Saturday, March 20, 2010

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।

दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन।
तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन॥
दया और धर्म उसके ह्रदय में बसते हैं, उसकी वाणी में मिठास होती है, ऐसे लोगों के नैन वि‍नम्रतावश सदा नीचे की ओर झुके रहते हैं मलूकदास जी कह रहे हैं यही उच्चेकोटि के लोगों की पहचान है।


आदर मान, महत्व, सत, बालापन को नेहु।
यह चारों तबहीं गए जबहिं कहा कछु देहु॥
आदर, मान, महत्व, सत्य और बचपन का प्यार... ये चारों ही उस वक्त गायब हो जाते हैं जब किसी से कोई कुछ मॉंग लेता है।

इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।
बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत॥


इस जीवन का गर्व क्या करना? ऐसी देह से प्रीत भी क्यों लगानी? इसकी बड़ी-बड़ी बातें पल भर मंे ही रेत की दीवार की तरह ढह जाती हैं।

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास 'मलूका कह गए, सबके दाता राम॥
न तो अजगर काम काज या नौकरी करता है, ना ही पंछी काम धंधे पर जाते हैं फिर भी परमात्मा की मर्जी से सारा संसार चलता रहता है, वही सबको सबकुछ देने वाला है।

Tuesday, March 2, 2010

कुछ भी करना, जो है उसमें दखल देना है

इसलि‍ये जो हो रहा है
उसे
केवल देखें,
उसमें बाधाएं पैदा ना करें।

ना ही रोयें गायें
ना ही इतरायें इठलायें
ना ही जोड़े घटायें।

क्‍योंकि‍
जब भी तुमने कुछ कि‍या
जब भी तुम कर्ता बने
दूसरा सि‍रा भी साथ्‍ा ही चलने लगता है
भला करने चलोगे, तो बुरा भी होगा।

तो अपने बस में यही है
कि‍ देखें
क्‍योंकि‍ देखने से ही असली चीज होती है
जो तुमसे होनी चाहि‍ये
और उस होने में
कोई बाधा नहीं बन सकता
तुम्‍हारी दुनि‍यां का
कोई ईश्‍वर भी नहीं।