Friday, March 29, 2013

ईश्वर की छवि और ईश्वर का सच

ईश्वर इंसान जैसा कोई चरित्र नहीं हैं..ये अलग बात है कि वो ऐसा हो भी स​कता है और नहीं भी। ईश्वर को आपके जीने—मरने से कोई सरोकार भी नहीं होता, ये और बात है कि आप कुदरत के नियमों को जानते समझतें हैं... उसके हिसाब से चलते हैं तो आपकी उम्र काफी लंबी हो। 
ईश्वर को जानने वाले कभी यह नहीं कहते कि वो ईश्वर के प्रतिनिधि हो गये हैं और उन्हें कुछ खास तरह के अधिकार बख्शे गये हैं..ये अलग बात है कि उनके बारे में हमारी कुछ धारणाओं में ऐसा पाया जाता है. किसी देवी को जीभ काट कर चढ़ा देना, किसी सदमें से ना उबर पाने की पिनक में सन्यासी बन कर जिन्दगी भर भटकते रहना, ईश्वर के बारे में सोचते हुए पागल हो जाना, ईश्वर के नाम पर भीख मांगना और धनदौलत का साम्राज्य खड़ा करना...इन सब बातों का ईश्वर से कैसा रिश्ता हो सकता है?

बाबा बनकर भीड़ की साष्टांग दंडवतों के मज़े लेना, भीड़ को भेड़—बकरियों की तरह चराना..इससे किसी ईश्वर को क्या लेना देना। आप कौन सी भाषा बोल रहे हैं, किस ग्रह के और किस देश संस्कृति  में पले बढ़े हैं इस के हिसाब से आपके आराध्य तय होते हैं... ना कि एक ओरिजनल ईश्वर. 
आपकी इच्छाओं आकांक्षाओं और फिर असफलताओं और कुदरती आपदाओं से ईश्वर के क्या सरोकार हो सकते हैं? या बचपन, जवानी, बुढ़ापे में बंटी 100 बरसे की छोटी सी जिंदगी की उपलब्धियों अनुपलब्धियों से ... (आपके हिसाब से भी) सृष्टि चलाने वाले ईश्वर के क्या रिश्ता है.

Saturday, January 19, 2013

जब आप ये जानते हैं

अभी या फिर कभी
सौभाग्य या दुर्भाग्य
आपको बिता ही देगा,
जब आप ये जान जायेंगे-
आप से कोई भी इच्छा नहीं होगी.
आपको कोई भी शोक न होगा.
इन्द्रियां आपके अधीन होंगी
और आप आनंद में।

आपसे जो भी होगा
चाहे सुख लाये या दुख
जीवन या मृत्यु
जब आप ये जान जायेंगे
कि दुनियां तुम्हारे बगैर भी चलेगी,
आप मुक्तभाव से कर्म करेंगे
बिना किसी मोह या बंधन के.

सारे दुख और कहीं से नहीं
भय से आते हैं
जब आप ये जानते हैं
आप भय से मुक्त हो जाते हैं
और इच्छाएं खो जाती हैं

आप आनन्द में होते हैं
और शांत.

Sooner or later,
Fortune or misfortune
May befall you.

When you know this,
You desire nothing,
You grieve for nothing.

Subduing the senses,
You are happy.

Whatever you do
Brings joy or sorrow,
Life or death.

When you know this,
You may act freely,
Without attachment.

For what is there to accomplish?

All sorrow comes from fear.
From nothing else.

When you know this,
You become free of it,
And desire melts away.

You become happy
And still.

~ Ashtavakra Gita (11.3-5)