उम्मीद के साहिल छूट गये, भंवरों के आगोश में नैया है
तूफां में उलझी कश्तियों का, सदा तू ही रहा खेवैया है
मेरा होना, ना होना क्या, सब तेरी मर्जी तेरी रजा
ये सजा बने या मजा बने, इस बात का तू ही रचैया है
तन मन धन के रिश्ते नाते, सब अर्थी तक ही हैं जाते
तुझसे जो रिश्ता वही असली, बाकी सब धूप है छैंयां है
इच्छाओं वेश्याओं संग, जो रमा रचा वो कहां बचा
तेरी बंसी सुनकर जो जी लीं, उन गोपियों का तू कन्हैया है