सत्, रज और तमस... इन तीनों गुणों में से किसी की भी पहुँच सत्य तक नहीं होती; ये तो डाकू-लुटेरों की तरह होते हैं, जो पकड़े जाने के डर से सार्वजनिक जगहों पर नहीं आते.
एक बार एक आदमी जंगल से गुजर रहा था कि तीन डाकू अचानक प्रकट हुए और उन्होंने उस व्यक्ति के पास जो कुछ भी था सब लूट लिया। तब उनमें से एक डाकू बोला - इस आदमी को जिंदा छोड़ देने का क्या मतलब है? ऐसा कहते हुए वो डाकू अपनी कटार लेकर आदमी को मारने को उद्धत हुआ, तो दूसरा डाकू बाला- इसे मारकर भी हमें क्या मिल जायेगा? उस दूसरे डाकू ने आदमी को हाथ-पैर बाँधकर वहीं जंगल में छोड़ दिया। डाकू आगे बढ़ गये।
कुछ देर बाद ही तीसरा डाकू उस हाथ-पैर बंधे व्यक्ति के पास लौटा और बोला - ओह्, मुझे माफ करना। आप घायल हो? मैं आपको बंधनो से आजाद करता हूं। उसके हाथ-पैर खोलने के बाद वो डाकू बोला - मेरे साथ आओ, मैं तुम्हें जंगल से बाहर, मुख्य मार्ग तक पहुंचा देता हूं। काफी देर बाद वह मुख्य सड़क तक पहुंचे। डाकू बोला- अब ठीक है, तुम इस सड़क पर सीधे चलते चले जाना, तो तुम अपने घर तक पहुंच जाओगे।
तब वह व्यक्ति बोला- आप तो मेरे लिए बहुत अच्छे रहे हैं, आपने मेरा बड़ा भला किया है, आप मेरे साथ मेर घर क्यों नहीं चलते। डाकू बोला- नहीं, मैं वहां नहीं जा सकता। पुलिस मेरे बारे मे ंसब जानती है।
यह संसार भी एक जंगल की तरह है। जो तीन डाकू-लुटेरे यहाँ आपकी फिराक में हैं वो हैं सत्व, रजस और तमस। जो व्यक्ति यहां लुटा वो सत्य का ज्ञान है। तमस ज्ञान को नष्ट कर देना चाहता है। रजस मनुष्य को संसार से बाँधता है, पर सत्व होता है जो उसे तमस और रजस से मुक्त करता है। सत्व के संरक्षण में ही मनुष्य, क्रोध, भावावेश और तमस की अन्य शैतानी प्रवृत्तियों से बच पाता है। हालांकि सत्व हमें सांसारिक बंधनों से मुक्त करता है तो भी वो है एक डाकू ही। सत्व मनुष्य को अंतिम सत्य का ज्ञान नहीं कराता तो भी वह मनुष्य को वह मार्ग दिखाता है जो ईश्वर तक ले जाये। वह मनुष्य को उस मार्ग तक ले जाता है जहां जाकर वह कहता है - यह है वो मार्ग जिसके किसी सिरे पर तुम्हारा घर है। हालांकि सत्य भी ब्रम्हज्ञान से बहुत दूर होता है।