- प्राचीन गुरू गूढ़, रहस्यमय, अगाध गंभीर और अनुक्रियाशील पाये जाते हैं।
- ज्ञान की गहराई अथाह है, क्योंकि वह अथाह है।
- हम जो कुछ भी करते हैं वह प्रकट को ही विस्तार देता विवरण होता है।
- खतरे को भांपता हुआ व्यक्ति कितना सजग होता है।
- मन कभी, मेहमाननवाजी में लगे व्यक्ति-सा सौजन्यपूर्ण होता है।
- मन कभी, पिघलती बर्फ सा घुलनशील होता है।
- मन कभी, अनगढ़ लकड़ी के ठूंठ सा सरल होता है।
- मन कभी, गहरी गुफाओं की तरह खाली होता है।
- मन कभी, मैले तालाब की तरह गंदला होता है।
- कौन इस बात का इंतजार करता है कि गंदलापन तली में बैठ जाए,पानी निथर जाये?
- कौन कर्म की गति में स्थिर बन रहता है?
- परमात्मा की ओर देखने वाला वासनाओं की पूर्ति के मार्ग नहीं ढूंढता।