बच्चे स्कूल जाते हैं या खेल—खिलौनों में डूब जाते हैं। घरवालियॉं झाड़ू—पोंछे, किचन, कपड़े धोने से फुर्सत नहीं पातीं। आदमी मजदूरी, दफ्तरों और धंधों पर लगे हैं। सब व्यस्त रहना चाहते हैं,पता नहीं किससे बचकर? क्यों लोग जिन्दगी से इतने भयभीत हैं? मौत से पहले ही मरते हैं, रोज, सालों तक...क्यों जिन्दगी इतनी भयावह है? या जिन्दगी जीना मेहनती, जुझारू, समझदार लोगों का ही काम है, उनका नहीं, जो इसे बहुत ही तयशुदा, मशीनी ढंग से बिताना चाहते हैं... जिन्दगी जीने से जिनका कोई सरोकार नहीं। जिन्दगी सब कुछ निश्चित और सुविधाजनक हो जाना नहीं है। जिन्दगी कुछ पा लेना नहीं है। जिन्दगी कुछ छोड़ देना नहीं है। जिन्दगी पलायन नहीं है। जिन्दगी कुछ बनने की कोशिश करना नहीं है। जिन्दगी कुछ बने रहना नहीं है।