Tuesday, November 30, 2010

सम्‍पूर्ण धार्मि‍क अदभुत रहस्‍यदर्शी गुरजिएफ इवानोवि‍च

यूनानी और आर्मेनियाई विरासत को प्रशस्त करने वाले संबुद्ध रहस्यदर्शी जार्ज इवानोविच गुरजिएफ का जन्म काकेशस में सन 1872 में हुआ था। अल्पायु में वे आत्मज्ञान की एक गहन अनुभूति, एक गहरे आत्मस्मरण के आयाम के प्रति जागृत थे। यही जागृति बाद में उनके जीवन का आधार बनी।

उन्होंने जब देखा कि लोग अपने स्व या अहं की निद्रा में सोये हुए हैं और परिणामस्वरूप अनावश्यक भ्रम और दुख में जी रहे हैं तो उनके मन में प्रश्न उठा - धरती पर जिन्दगी का अर्थ और महत्व क्या है और विशेष रूप से मनुष्य जीवन का?

अपने अन्दर इस प्रश्न का उत्तर खोजने का प्रयास करने की अदम्य इच्छा से उन्होंने अपने समय के धर्म और विज्ञान का अध्ययन किया पर उन्हें कोई यथोचित उत्तर नहीं मिला। तभी उन्हें अंर्तज्ञान से महसूस हुआ कि प्राचीन सभ्यताओं के अध्यात्मिक समाजों में उनके प्रश्न के जवाब की कुंजी थी। तब उन्होंने निर्णय किया कि वह गूढ़गहन प्राच्य आध्यात्मिक ज्ञान के स्रोत की खोज करेंगे।

उनकी खोज उन्हें कई दूरस्थ और खतरनाक स्थलों पर ले गई। और अन्ततः उन्हें प्राक्ऐतिहासिक मिस्र और अबेसिनिया (वर्तमान इथियोपिया) के मूल प्राच्य ज्ञान में सत्य के बुनियादी सिद्धांतों और धारणाओं पता चला। अध्यात्म के बुनियादी सिद्धांतों और धारणाओं की खोज के बाद गुरजिएफ ने जाना कि समय के बहाव में ये आध्यात्मिक ज्ञान या शिक्षाएं मिस्र के उत्तर भाग की ओर चली गई हैं और उन्हें अपनी खोज की नई दिशा मिली।

उनकी खोज की नई दिशा उन्हें बेबीलोन, हिन्दू कुश, साइबेरिया और गोबी के रेगिस्तानों में ले गई, इन प्रदेशों से उन्होने प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान के बिखरे हुए सूत्रों को इकट्ठा किया। वे तिब्बत भी आए। उसके बाद गुरजिएफ ने इस गुह्य आध्यात्मिक ज्ञान को पुर्नव्यवस्थित और आधुनिक काल की आवश्यकताओं के अनुसार सूत्रबद्ध किया, और  इसे गुरजिएफ ने ”द फोर्थ वे“ (चैथा रास्ता) नाम दिया।

यह देखते हुए कि कैसे मनुष्य जीवन का पतन होकर, मनुष्य पूरी तरह भौतिकता में ही खो सा गया है और मुखौटें से सम्पन्न व्यक्तित्व ही मुख्य रह गया है, गुरजिएफ को यह लगा कि पश्चिमी जगत को एक धार्मिक क्रांति की आवश्यकता है। इसलिए उन्होंने पश्चिमी देशों में ‘‘द फोर्थ वे’’ की शिक्षाओं से परिचित कराने, उन्हें स्थापित करने का मिशन शुरू किया। उन्होंने मानव के सुसंगत समस्वर विकास हेतु ‘‘द हार्मोनियम डेवलपमेंट आॅफ मेन’’ नाम की संस्था बनाई। इस संस्था में ऐसे हेल्पर इंस्ट्रक्टर या सहायता करने वाले अनुदेशक, प्रशिक्षित किये जाते थे जो द फोर्थ वे की शिक्षाओं का प्रचार-प्रसार करें। लेकिन जब उन्होंने पाया कि वो समय द फोर्थ वे शिक्षाओं की दृष्टि से सही नहीं है तो उन्होंने शि‍क्षाओं को भविष्य के लिए सुरक्षित रखने और भविष्य में संवर्धित करने के लिए लिगोमिनिज्म किया। यह एक ऐसा जरिया होता है जिसके माध्यम से उच्च आत्माएं गुह्य प्राच्य आध्यात्मिक ज्ञान को भविष्य में अक्षुण्ण या सुरक्षित रखती और योग्य लोगों को प्रदान करती हैं। गुरजिएफ की ऑल एंड एवरीथिंग नामक तीन पुस्तकों की सीरीज में यह ज्ञान है, जो हम सब के लिए महान विरासत की तरह है।

द फोर्थ वे क्या है?
द फोर्थ वे एक उच्च स्तरीय समृद्ध और व्यावहारिक, प्रायोगिक शिक्षाएं हैं जो ज्ञान के खोजी को यह बताती हैं कि कैसे वह अपनी रोजाना की आम जिन्दगी का, यथार्थ धार्मिक जीवन में उतरने में उपयोग कर सकता है।
एक प्राचीन और मौलिक ज्ञान द फोर्थ वे अपने आप में समग्र और पूर्ण है। गुरजिएफ इसके बारे में कहते हैं कि द फोर्थ वे पूरी तरह अपने पर ही आधारित, अन्य आध्यात्मिक मार्गों से मुक्त और आज तक पूरी तरह से अज्ञात है।

तीन पारंपरिक मार्ग हैं - एक देह का या योग मार्ग, दूसरा बुद्धि का यानि ज्ञान मार्ग, तीसरा मन का यानि भक्ति का - द फोर्थ वे यानि चैथा मार्ग इन तीनों केन्द्रों पर एक साथ कार्य करता है, जिससे तीनों केन्द्रों का समरसतापूर्ण, समस्वर विकास हो सके।
द फोर्थ वे में आम जिन्दगी से पलायन ना करके इसके पालन करने वाले को यह सिखाया जाता है कि कैसे रोजाना की आम जिन्दगी को होशपूर्वक अनुभव करते हुए यथार्थ के जीवन तक पहुंचा जाये।
इस काम में खोजी को खुद ही अपने बारे में प्रमाणिक रूप से सच जानकर यह पता लगाना होता है कि वह कौन सी विधियां या तरीके हैं जिनका प्रयोग यथार्थ जीवन तक पहुंचने में वह कर सकता है।
आधुनिक जीवन के बारे में गुरजिएफ ने कहा - आज के मानव का जीवन अपने विकास के दौरान ऐसे अनिश्चित काल में आ पहुंचा है, जहां यदि पूर्वी विश्व के ज्ञान और पश्चिमी विश्व की ऊर्जा का समरसतापूर्ण उपयोग नहीं किया जाता तो विनाश की आशंका है।
गुरजिएफ की पुस्तकों में - बीलजेबुब्स टेल्स टू हिज ग्रेंडसन, मीटिंग्स विथ रिमार्केबल मेन, लाइफ इस रियल ओनली देन-वेन आई एम, द हेराल्ड ऑफ कमिंग गुड, व्यूज फ्राम द रियल वल्र्ड की पुस्तक श्रंखलाएं हैं।

गुरजिएफ का अंतिम संदेश -
बहुत सारी गुप्त गुह्य शिक्षाएं या ज्ञान हैं जो रहस्य के रूप में विशेष विद्यालयों में संरक्षित है इस ज्ञान के माध्यम से यह संभव है कि हम धर्म में आये विक्षेपों को परिशुद्ध कर सकें या जो हम भूल गये हैं उसे फिर से स्थापित कर सकें।
सारी धर्म नये तरह के आदमी के सृजन में असफल रहे हैं। गुरजिएफ ने चेतावनी के स्वर में कहा था - मानवता का विकास रूक सा गया है और ठहराव का मतलब है कि जहां हम ठहरें हैं, उससे आगे ना बढ़ें तो पतन का सपाट रास्ता वहीं से शुरू होता है। विकास के उलट यहां तो हम स्पष्ट देख रहे हैं कि मानव के मूल जीवन की बजाय छद्म व्यक्तित्व हावी हो गया है, एक कृत्रिमता पुष्पित पल्लवित हो रही है, अयथार्थ को प्रश्रय मिल रहा है, प्राकृतिक सहज जीवन पर कृत्रिमभौतिकता हावी हो रही है। आज की संस्कृति में मशीनीपना है। लोग अपनी प्राकृतिक स्वतंत्रता खोकर मशीनों में बदल रहे हैं, मशीनों का ही हिस्सा होकर रह गये हैं। मनुष्य ऐसा हो गया है जैसे उसने खुद चाहकर गुलामी चुन ली हो, मनुष्य स्वैच्छिक दास हो गया है। ऐसा दास जिसे बन्धनों की भी जरूरत नहीं, अपनी मर्जी से ही वह बंधकों जैसा है। दासता में उसे मजा आने लगा है, दास रहना उसका शौक हो गया है, उसे इस दासता पर गर्व महसूस होता है। यही सब वह भयावह चीजें हैं जो मनुष्य के साथ घटित हो गई हैं।

एक दुर्लभ राजनीतिक राय जाहिर करते हुए गुरजिएफ ने भावी अनुमान कर कहा कि पूर्वी विश्व फिर से विश्व में उठ खड़ा होगा और महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त कर अल्पकाल के लिए सभी तरह से शक्तिशाली, प्रभावशाली पश्चिम की नयी संस्कृति जो कि अमरीका द्वारा संचालित है, के लिए खतरा बन जायेगा।

उन्होंने कहा कि किसी को दुनियां को उसी तरह देखना चाहिए जैसे किसी अन्य व्यक्ति को या स्वयं अपनी ओर। बाहरी संसार हमारे भीतरी संसार का ही प्रतिबिम्ब या वृहत रूप है। जैसे किसी व्यक्ति के दो पक्ष, उसी तरह धरती के दो पक्ष हैं। इन दोनों पक्षों से ही व्यक्ति सम्पूर्ण बनता है उसी तरह ईश्वर के भेजे सभी मसीहाओं और देवदूतों के यही प्रयास रहते हैं कि सभी पक्षों में समरसता समस्वरता बनी रहे।
उन्होंने कहा - समय बहुत ही कम है मानव के सम्पूर्ण विनाश से बचने के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि हम शीघ्र अति शीघ्र विश्व में समस्वरता उपलब्ध कर लें।

गुरजिएफ ने कहा- विश्व में समस्वरता की उपलब्धि किसी भी राजनीतिक, दार्शनिक, धाम्रिक या किसी भी तरह के संगठनात्मक आंदोलन से नहीं पायी जा सकती ये सभी आदमी को भीड़ की तरह संचालित करते हैं, आदमी के साथ भेड़ों के रेवड़ सा व्यवहार करते हैं। विश्व मेंसमस्वरता की उपलब्धि मनुष्य के व्यक्तिपरक विकास से ही होग। एक आदमी में उपस्थित अनन्त अज्ञात संभावनाओं पर कार्य करने से अन्य व्यक्ति भी प्रभावित होते हैं। यदि कुछ ही लोग अपने आप को पूरी तरह मौलिक, प्राकृतिक व्यक्ति के रूप में रूपान्तिरित कर लेंतो प्रत्येक व्यक्ति अन्य हजारों लोगों को रूपान्तिरित करने में सक्षम है और वो हजार व्यक्ति अन्य लाखों को और इसी तरह दुनिया बदल सकती है।

द फोर्थ वे आत्म-रूपान्तरण वह पवित्र और वैज्ञानिक ज्ञान है जो हमारी परिस्थितियों से सीधे संवाद करता है और हमें वह सिद्धांत और प्रायोगिक सूत्र देता है जिससे मनुष्य वैयक्तिक और सामूहिक रूप से सर्वथा नये जागृति के मार्ग पर प्रशस्त हो सकता है।

गुरजि‍एफ मूमेंटस के नाम से वि‍ख्‍यात वि‍शि‍ष्‍ट मुद्राओं और भंगि‍माओं से सम्‍पन्‍न संगीत नृत्‍य हेतु इस लि‍न्‍क पर क्‍ि‍लक करें 



गुरजि‍एफ के जीवन पर बनी एक फि‍ल्‍म ''ए मीटिन्‍ग वि‍थ रि‍मार्केबल मेन'' यू टयूब पर उपलब्‍ध है।

Wednesday, September 22, 2010

बुल्‍ले शाह की अदभुत वाणी


मक्के गयां गल मुक्दी नाहीं भले सौ सौ जुमा पढ़ आईये
गंगा गयां गल मुक्दी नाहीं भले सौ सौ गोते खाईये
गया गयां गल मुक्दी नाहीं भले सौ सौ पंड पढ़ाईये
बुल्ले शाह गल ताइयों मुक्दी जदो "मैं" नूं दिलों गंवाईये

मक्का जाने से बात खत्म नहीं होती भले ही सौ सौ जुमे की नमाजें पढ़ लें। गंगा जाने से भी बात खत्म नहीं होती चाहे सौ सौ डुबकियां स्नान कर लें। गया जाकर सौ सौ पंडों से पिंडदान करवाने से भी बात खत्म नहीं होती। बात तो वहां खत्म होती है जब हम अहं को खो दें।


पढ़ पढ़ आलम पागल होया, कदी अपने आप नू पढ़या नईं
जा जा वड़दा मंदिर मसीतां, कदी अपने आप चे वड़या नई
एवईं रोज शैतान नाल लड़दा, कदी अक्स अपने नाल लड़या नई
बुल्ले शाह आसमानी उड दियां फड़दा, जेड़ा घर बैठा उह नूं फड़िया नईं

सारी दुनियां पोथी पुराण पढ़ पढ़ पागल हो रही है कोई अपने आप को पढ़ता ही नहीं। लोग मन्दिर मस्जिदों में घुस घुस कर भीड़ें लगा रहें हैं पर अपने भीतर घुस के देखने की खबर किसी को नहीं। लोग, रोज ही तरह तरह की बुराईयों को शैतान की जान, उनसे लड़ते रहते हैं पर अपनी ही छवि के दोष नहीं देखते। बुल्लेशाह कहते हैं कि हम आसमानी बातों की खोज खबर लेते रहते हैं पर जो हमारे भीतर ही बैठा है उसे कभी नहीं पकड़ते।


बे बोलदे दी तेनू समझ है ना, जेड़ा नित तेरे विच बोल दा ई
भुला आप फिरे बोले बाहर उसनू, वांगू मुर्गिया दें कूड़ा फोलदा ई
भला बुझ हां केड़ा विच है तेरे, शायद ओ ही होवे जेनू तू तौल दा ई
बुल्ला शाह  जुदा नहीं रब  ते थों, आपे वाज मारयां ते बोलदा ई

जो मौन ही हो रहता है उसकी तुझे कोई समझ नहीं है तो यह प्रश्न करने की कोशिश कर जो तुझसे बोल रहा है... जो तुझसे अभिव्यक्त हो रहा है वह क्या है? अपने आप को भुलाकर तू उसे बाहर उसी तरह ढूंढ रहा है जैसे मुर्गिंया कचरे में मुंह मार मार कर भोजन ढूंढती रहती हैं। बुल्लेशाह कहता है कि ईश्वर तुझसे अलग नहीं.. वो ही तुझमें पुकारता भी है... और उसका जवाब भी देता है।

Thursday, June 17, 2010

तेरे दिल में है खुदा जाहिर कर

 तेरे दिल में है क्या जाहिर कर
इसमें रहता है खुदा जाहिर कर

छोड़ दे उसकी रजा पर सब कुछ
तेरी उससे है रजा जाहिर कर

सांस मिटने पे सभी मिटते हैं
जीते जी मिटना है क्या जाहिर कर

सारी दुनियां ही सपने में गुम है
सच है कैसी, क्या बला, जाहिर कर

Saturday, March 20, 2010

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।

दया धरम हिरदे बसै, बोलै अमरित बैन।
तेई ऊँचे जानिये, जिनके नीचे नैन॥
दया और धर्म उसके ह्रदय में बसते हैं, उसकी वाणी में मिठास होती है, ऐसे लोगों के नैन वि‍नम्रतावश सदा नीचे की ओर झुके रहते हैं मलूकदास जी कह रहे हैं यही उच्चेकोटि के लोगों की पहचान है।


आदर मान, महत्व, सत, बालापन को नेहु।
यह चारों तबहीं गए जबहिं कहा कछु देहु॥
आदर, मान, महत्व, सत्य और बचपन का प्यार... ये चारों ही उस वक्त गायब हो जाते हैं जब किसी से कोई कुछ मॉंग लेता है।

इस जीने का गर्व क्या, कहाँ देह की प्रीत।
बात कहत ढर जात है, बालू की सी भीत॥


इस जीवन का गर्व क्या करना? ऐसी देह से प्रीत भी क्यों लगानी? इसकी बड़ी-बड़ी बातें पल भर मंे ही रेत की दीवार की तरह ढह जाती हैं।

अजगर करै न चाकरी, पंछी करै न काम।
दास 'मलूका कह गए, सबके दाता राम॥
न तो अजगर काम काज या नौकरी करता है, ना ही पंछी काम धंधे पर जाते हैं फिर भी परमात्मा की मर्जी से सारा संसार चलता रहता है, वही सबको सबकुछ देने वाला है।

Tuesday, March 2, 2010

कुछ भी करना, जो है उसमें दखल देना है

इसलि‍ये जो हो रहा है
उसे
केवल देखें,
उसमें बाधाएं पैदा ना करें।

ना ही रोयें गायें
ना ही इतरायें इठलायें
ना ही जोड़े घटायें।

क्‍योंकि‍
जब भी तुमने कुछ कि‍या
जब भी तुम कर्ता बने
दूसरा सि‍रा भी साथ्‍ा ही चलने लगता है
भला करने चलोगे, तो बुरा भी होगा।

तो अपने बस में यही है
कि‍ देखें
क्‍योंकि‍ देखने से ही असली चीज होती है
जो तुमसे होनी चाहि‍ये
और उस होने में
कोई बाधा नहीं बन सकता
तुम्‍हारी दुनि‍यां का
कोई ईश्‍वर भी नहीं।

Saturday, January 30, 2010

एकरसता

अगर मैं बैठा रहता हूं
या लेटा रहता हूं
तो यह बैठना और लेटना
एकरसता बोरियत लाती है।

मैं चलना शुरू करता हूं
तो पहले पहल
मजा आता है
और दूरियां नापने में ही
सार्थकता समझ आती है।

फिर थकानों से मिलने,
नये नये दृश्य देखने का शगल भी
एकरसता हो जाता है।

मैं चाहता हूं
मैं ठहरूं भी
मैं पुराने ही दृश्य
फिर एक बार देखूं

मैं चाहता हूं
फिर बैठा रहूं
या लेटा रहूं।
फुर्सत के दिनों की तरह।

सारी हवस
पहले-पहल
जरूरतों की शक्ल में ही आती है,
फिर आदत बन जाती है

जरूरतों की राह चलते-चलते,
हवस के जंगल में भटक जाता है आदमी

तो किसी भी चीज को
‘जरूरत की मान्यता’ देने के पहले
आदमी को
दो लाख बार सोचना चाहिये।

छोटी-छोटी देहों में ही, ये सारे ब्रम्हांड बढ़े हैं
अंकुर की नींदों में देखो, कितने सारे वृक्ष खड़े हैं