Wednesday, June 17, 2015

अनेक रोगों की घरेलू औषधि है पान

पान भारतीय संस्कृति का अभिन्न अंग है। जन्म से लेकर मृत्युपर्यंत विभिन्न संस्कारों में हवन, यज्ञ, पूजन, देवार्पण आदि में पान की अनिवार्यता स्वीकारी गयी है। पान सत्कार का भी एक ऐसा सस्ता, सरल और उत्तम साधन है जो समाज में छोटे-बड़े, ऊंच-नीच, अमीर-गरीब सभी को समानता और सम्मान की एकरूपता प्रदान करता है जो भारतीय पुरातन सांस्कृतिक समाजवाद का एक रूप है। आयुर्वेद में पान का अत्यधिक महत्व है। औषधि के रूप में पान का प्रयोग प्राचीन काल से ही होता आ रहा है। आयुर्वेदिक ग्रंथों में पान का औषधि के रूप में प्रचुर उल्लेख मिलता है। पान स्वयं में एक औषधि है। इसके साथ ही कई प्रकार की औषधियों में भी पान का उपयोग होता है। पान को तम्बूल, नागबेल, नोगरबेल, बीटल लीप आदि के नामों से भी जाना जाता है। औषधीय कर प्रयोग के रूप में पान का निम्नानुसार प्रयोग किया जाता है।
* पान के रस को शहद के साथ चटाने के बच्चों की सूखी खांसी ठीक हो जाती है।
* पान के पत्तों का रस आंखों में डालने से रतौंधी की बीमारी में लाभ होता है।
* बच्चों की छाती में कफ भर गया हो तो पान पर अरंड (अंडी) का तेल लगाकर थोड़ा गरम करके छाती पर बांधते रहने से कफ निकल जाता है।
* बच्चों को अजीर्ण होने पर पान के रस में थोड़ा-सा शहद मिलकार चटायें। इससे अपान वायु निकल जाती है।
* सूखी खांसी एवं कुकुर खांसी में पान के रस से लाभ होता है। खांसी हेतु होने पर पान के रस को निकालकर थोड़ा गर्म करके दिन में तीन-चार बार तक पिलाते रहना चाहिए।
* सूखी खांसी में वच, अजवाइन और छोटी पीपल पान में रखकर रस चूसने खांसी ठीक हो जाती है।
* मिट्टी के तेल आदि की गंध हाथ में लग जाये तो पान के पत्ते को मल लेने से उसकी गंध निकल जाती है।
* कंठ में कफ भर जाने पर पान का रस, काली मिर्च का चूर्ण एवं शहद मिलाकर सुबह-शाम सेवन करें। शीतजन्य स्वर भंग होने पर पान के बीड़े में मुलहठी का चूर्ण डालकर सेवन करने से लाभ होता है।
* गांजा, भांग, अफीम और मदिरा के नशे को दूर करने के लिए पान के पत्तों के रस को छाछ के साथ मिलाकर पिलाने से लाभ होता है।
* पान के रस में दुगुनी शक्कर मिला कर सेवन करने से हृदय की दुर्बलता दूर होती है तथा इससे पाचन शक्ति भी बढ़ती है।