Saturday, October 10, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 15

  • प्राचीन गुरू गूढ़, रहस्यमय, अगाध गंभीर और अनुक्रियाशील पाये जाते हैं।

  • ज्ञान की गहराई अथाह है, क्योंकि वह अथाह है।

  • हम जो कुछ भी करते हैं वह प्रकट को ही विस्तार देता विवरण होता है।
- बरसात में उफनती नदी को पार करने वाला कितना ध्यानमय होता है कि बह न जाये।
- खतरे को भांपता हुआ व्यक्ति कितना सजग होता है।
- मन कभी, मेहमाननवाजी में लगे व्यक्ति-सा सौजन्यपूर्ण होता है।
- मन कभी, पिघलती बर्फ सा घुलनशील होता है।
- मन कभी, अनगढ़ लकड़ी के ठूंठ सा सरल होता है।
- मन कभी, गहरी गुफाओं की तरह खाली होता है।
- मन कभी, मैले तालाब की तरह गंदला होता है।
  • कौन इस बात का इंतजार करता है कि गंदलापन तली में बैठ जाए,पानी निथर जाये?
  • कौन कर्म की गति में स्थिर बन रहता है?
  • परमात्मा की ओर देखने वाला वासनाओं की पूर्ति के मार्ग नहीं ढूंढता।
- चूंकि वह वासनाओं को पूरा करने के उपाय नहीं ढूढता इसलिए परिवर्तन या बदलाव की इच्छा के भार से उसकी पीठ दोहरी नहीं हुई जाती।

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