Monday, December 10, 2012

तू ना जाने आसपास है खुदा

धुंधला जायें जो मंजिले,
इक पल को तू नज़र झुका
झुक जाये सर जहां वहीं,
मिलता है रब का रास्ता
तेरी किस्मत तू बदल दे,
रख हिम्मत बस चल दे
तेरे साथी मेरे कदमों के हैं निशां
तू ना जाने आसपास है खुदा

खुद पे डाल तू नजर
हालातों से हारकर... कहां चला रे!
हाथ की लकीर को मोड़ता-मरोड़ता,है हौसला रे
तो खुद तेरे ख्वाबों के रंग में,
तू अपने जहां को भी रंग दे,
कि चलता हूं मैं तेरे संग में,
हो शाम भी तो क्या....
जब होगा अंधेरा
तब पायेगा दर मेरा
उस दर पे
फिर होगी तेरी सुबह
तू ना जाने आसपास है खुदा


मिट जाते हैं सबके निशां
बस एक वो मिटता नहीं
मान ले जो हर मुश्किल को मर्जी मेरी
हो हमसफर ना तेरा जब कहीं
साया मेरा रहेगा तब वहीं
तुझसे कभी भी ना इक पल मैं जुदा
तू ना जाने आसपास है खुदा