तदा द्रष्टुः स्वरूपेऽस्थानम्।
उस समय द्रष्टा अपने मूल स्वरूप में स्थित होता है।
दूसरे सूत्र के अनुक्रम में यह सूत्र कहता है - कि जब चित्त की वृत्तियाँ, उसके धंधें कहाँ-कहाँ तक फैले हुए हैं यह जान जाता है तो दृष्टा अपने मूल स्वरूप में स्थित होता है।
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