Monday, November 9, 2009

रे मन भजो प्रभु का नाम!





रे मन भजो प्रभु का नाम!
जब तक सांस में सांस रहेगी, जग से झूठी आस रहेगी।
कहेगी जुबां दिल के अफसाने, कोई सुने, चाहे माने न माने।
विराने जब रिश्तों पे उतरें, और उम्रें ख्वाबों के पर कुतरें।
वरें अंधेरे जब सन्नाटे, कदम-कदम हो मृत्यु की आहटें।
सुगबुगाहटें हों जब परलोक की, खबर नहीं हो जब उस ओट की।
खोट देखकर जग की रोंएं जब नैना अविराम,
रे मन भजो प्रभु का नाम।

4 comments:

  1. ... बेहद प्रभावशाली !!!!!

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  2. राजे जी, आपसे मिलकर प्रसन्नता हुई है.
    आप तक पहुँचने में देर हुई. (असल में अपना ब्लॉगजगत काफी विशाल होता जा रह है)

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  3. धन्‍यवाद सुलभ जी... हमारी ओर से गलबहि‍यां स्‍वीकार करें, अब मि‍ल ही गये हैं तो नहीं बि‍छड़ेंगे।

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  4. वाहवा.... सुंदर रचना.. साधुवाद..

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