कोई वजह नहीं है कि तुझे याद किया जाये
और तुझे कोई याद कर भी नहीं रहा है
और तुझे फर्क भी नहीं पड़ता
कि कोई तुझे याद करे ना करे
बस हम जैसे इंसान
दिखावटी अध्यात्म और धर्म के नाम पर
मन के धोखों में
या अपनी निराशाओं के झोंकों में
तुझे याद करते हैं
किसी रोगी की तरह
जिसके मुंह से निकलने वाली
दर्द और बेबसी की आवाजें
उसकी अपनी मर्जी नहीं होतीं
बच्चों और
उसके जैसे अन्य रोगियों के सिवा
उसके पास मंडराते
और चालू, चलते फिरते लोग
उस पर तेरे डर की वजह से
हंसते भी नहीं है
सब मग्न हैं उस खेल में
जिसे बस तू ही खेल की तरह खेलता है
बाकी सब बड़ी गंभीरतापूर्वक अपनी पारियां
टाईमपास कर बिता रहे हैं
बोझ सा लगता है जिन्दगी का खेल
आठ दस घंटें की नौकरी या धंधा पानी
और संडे के संडे सोचना
कि ये सांसों की कहानी
फ्लॉप फिल्म सी
किसी गांव के सिनमा घर में
टाईमपास के लिए इकट्ठे गंवारों में भी
सुनी देखी नहीं जायेगी
हालांकि किसी की जिन्दगी
किसी के लिए फिल्म हो
ये कोई भी नहीं चाहता
फिर भी सबके लिए, सबकी जिन्दगी
एक फिल्मी सीन की तरह है
Monday, December 14, 2009
Saturday, December 5, 2009
तू ही रचैया है
उम्मीद के साहिल छूट गये, भंवरों के आगोश में नैया है
तूफां में उलझी कश्तियों का, सदा तू ही रहा खेवैया है
मेरा होना, ना होना क्या, सब तेरी मर्जी तेरी रजा
ये सजा बने या मजा बने, इस बात का तू ही रचैया है
तन मन धन के रिश्ते नाते, सब अर्थी तक ही हैं जाते
तुझसे जो रिश्ता वही असली, बाकी सब धूप है छैंयां है
इच्छाओं वेश्याओं संग, जो रमा रचा वो कहां बचा
तेरी बंसी सुनकर जो जी लीं, उन गोपियों का तू कन्हैया है
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