Thursday, June 9, 2011

इच्‍छा क्‍या है ?


क्या ऐसा नहीं हुआ कि जब कभी आपने जीवन में पहली बार होशो हवास में कोई फल खाया, तो आपको उसके एक विशेष स्वाद की अनुभूति होती है। यह अनुभूति विशुद्ध रूप से आपकी जीभ पर स्थित रस ग्रंथियों का काम है। इससे यह भी साबित होता है कि वह सही-सही काम कर रही हैं।
लेकिन इसके बाद... आपके ध्यान में रहता कि इसके बाद क्या होता है? इसी तरह की कोई दूसरी परिस्थिति सामने आने पर पुनः जीभ उस नये फल का स्वाद आपके मस्तिष्क तक पहुंचाती है, अनुभूति कराती है....आपको अनुभूति होती है...लेकिन बात यहीं खत्म नहीं होती।
अगर आप अपने प्रति जागरूक नहीं हैं तो बात विकृत हो सकती है। वो कैसे? आप पिछली बार हुई अनुभूति की तुलना इस अनुभूति से करते हैं। फिर इन दोनों में से एक को श्रेष्ठ और दूसरी को कमतर बताते हैं। आपके दिमाग में यह निर्णय भी तय होकर स्टोर हो जाता है कि फलां फल ही बेहतर है। यहां तक कि आप खुद से यह घोषणा भी कर देते हैं कि आइन्दा मैं वही फल खाऊंगा।
ये सब कहने का तात्पर्य यह है कि इन्द्रियों से अहसासों होना एक काम है.. अपनी प्रक्रिया है.. वो यांत्रिक हैं। आपने देखा कि आपकी जीभ के द्वारा आपके मस्तिष्क में किसी स्वाद का बोध आया। प्रीतिकर लगे तो इसे आप सुख और अप्रीतिकर लगे तो दुख कहते हैं। जबकि किसी इन्द्रिय के बोध का सुख दुख से कोई लेना देना नहीं।
पर हमारी चेतना और विवेक से उपजे विचारों से जुड़ने पर ये अहसास सुख या दुख बन जाते हैं। सुख या दुख बन जाने के बाद, इच्छाओं या अनिच्छाओं को जन्म देते हैं।
कभी दुर्घटनावश आपके शरीर में एक धारदार चीज आर पार हो जाये तो क्या होगा? यदि आपने पूर्व में इस संबंध में या इससे जुड़े विषय पर विचार पढ़े, सुने, देखे या किये हैं तो हो सकता है आप घबरायें, हो सकता है इसके लिए तैयार ही हों, हो सकता है इतनी विकट स्थिति देख ह्दयघात हो जाये.... लेकिन एक व्यक्ति जिसने इस बारे में कभी नहीं सोचा, पढ़ा, किया, उसके साथ यह वाकया हो जाये तो...। ऐसा हुआ है... कि एक व्यक्ति के शरीर में एक सरिया आर पार हो गया। वो चुपचाप डाॅक्टर के पास गया, डाॅक्टर ने हालातों के मुताबिक आवश्यक उपाय किये सरिया बाहर निकाला गया और सब ठीक ठाक हो गया।
आपने पढ़ा सुना और देखा ही होगा कि सांपों के सम्पर्क में आने पर, किसी सांप के दिख भर जाने से ही .. कई लोग भय से उपजे हार्टअटैक, ब्लड प्रेशर जैसे विकारों से ही मर जाते हैं। उसके बाद यदि सांप वाकई काट ले तो भी कई लोग, इलाज के अभाव या इलाज के दौरान ही सोच-सोच कर ही मर जाते हैं कि इतना खतरनाक वाकया हो गया... सांप ने काट लिया। ये तो किसी तरह बच गये लोगों को ही पता चल पाता है कि सांप जहरीला था या नहीं था, उसके जहर ने शरीर पर प्रभाव किया था या नहीं। ये तो सभी जानते हैं कि जहरीले सांपों का प्रतिशत बिना जहर वाले सांपों की अपेक्षा बहुत ही कम है। इस प्रकार हमारे शरीर की आवश्यकताओं अनुसार हमारी इन्द्रियों की अपनी नैसर्गिक अनुक्रियाएं हैं। लेकिन इन अनुक्रियाओं से विचारों के जुड़ने के बाद इच्छाओं, अनिच्छाओं का जन्म होता है।

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