पतंजलि योगसूत्र का सूत्र - 1
।। अथ योगानुशासनम्।।
मेरी समझ से योग सूत्र का मतलब ‘जुड़ने के सूत्र’, जुड़ने के तरीकों या उपायों से है।
किससे बिछड़े या छूट गये हैं हम? किससे अलग होकर हम इस तरह की दशा में बचे हैं? किससे वापस जुड़ना है? इन प्रश्नों के उत्तरों की तलाश हमें ‘योग’ शब्द के अर्थों को समझने का आधार देगी।
अथ योगानुशासनम। अब योग अनुशासन। अथ यानि अब? यह एक प्रश्न की तरह है कि अब क्या? अब तक जैसे भी जिए टूटे टूटे थे, जुड़े नहीं थे। अब खुद से जुड़ने के लिए बाहरी, अन्य के नहीं अपने कायदे कानून। अपना अनुशासन, अपने लिए।
अब योग अनुशासन, इस वाक्य से यह भी समझना चाहिए कि चलो अब तैयार हों उस मार्ग पर चलने के लिए जो जोड़ता है।
जो इस सूत्र में नहीं कहा गया पर जो ‘अथ’ या ‘अब’ का मतलब है - कि, अब समय निकाला जाएगा खुद से जुड़ने के लिए। वैसे ही जैसे हम बाहर से जुड़े हैं। जैसे बीवी बच्चों, पैसे कमाने को 8 -10-12 घंटे देते हैं। वैसे ही समय दे खुद को। अपने शरीर, मन, दिल-दिमाग को।
बाहर किसी व्यक्ति से जुड़ना हो, उसे समझना-जानना हो तो उसे समय देना पड़ता है। लेकिन आदमी की अपने बारे में यह सबसे बड़ी भ्रांति होती है कि वह अपने आपको जानता-समझता है। निश्चित ही अपने को जानने समझने वाले और ही तरह के लोग होते हैं।
तो अपने से जुड़ने के लिए समय निकालना होगा वैसे ही जैसे आप रोज समय निकालते हैं समाचार पत्र पड़ने, टीवी चैनल्स देखने और अपनी मनपसंद हर बात करने के लिए।
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अब योगानुशासन। शब्दों को सुनना चाहिये, उन पर ध्यान देना चाहिए। मनन करना चाहिए कि जिसने वह शब्द कहे उसकी मंशा और अनुभव, उन शब्दों का यथार्थ क्या रहा होगा।
अब योगानुशासन; ये शब्द यह भी कहते हैं कि जब कुछ सीखा जाए तो पूर्णतः समग्रतः उसी को समर्पित हुआ जाए।
आज के लोग दो-चार नावों पर इकट्ठा सवार हो जाते हैं, फिर कहीं के नहीं रहते।
दूसरा, जिज्ञासा, प्रश्नों को उठने से नहीं रोकना चाहिए। जिज्ञासा, प्रश्नों का उठना आदमी के जिंदा रहने की निशानियां हैं और उसकी ताजा जिन्दगी की सुबूत भी।
पतंजलि का पहला सूत्र भूमिका की तरह है। तो ‘योग अनुशासन’ इन दो शब्दों को गहराई से पढ़ने की मनन करने की जरूरत है, ताकि योग की समझ बने।
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