तीन तरह के बल हैं शरीर, मन और अहसास। जब तक ये इकट्ठे, बराबर, एकसमान समस्वरता से विकसित नहीं होते, ये उच्च बलों से एक स्थिर और सतत सम्पर्क में नहीं बना सकते। तो हमारे काम (‘‘वर्क’’) में सबकुछ उन उच्च बल से सम्पर्क की तैयारी (की जाती) है। यही हमारे काम का लक्ष्य है। उच्च ऊर्जांएँ चाहती तो हैं पर वह देह के तल पर तब तक नहीं आ सकती जब तक कोई काम (‘‘वर्क’’) न करे। काम करने से ही आप अपने उद्देश्य को पूरा कर पाएंगे और ब्रह्मांण्ड के जीवन में शामिल हो पाएंगे और यही है वह जिससे आप अपने जीवन को अर्थ और महत्व दे सकते हैं। अन्यथा आप केवल अपने क्षुद्र अहंकार को जीने के लिए ही हैं और आपके जीवन का कोई अर्थ नहीं है।
- जैने द साजेम्न
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