Wednesday, October 21, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 20

  • सीखना और बनावटीपन छोड़ दो और अपनी सभी समस्याओं का अंत करो।
- क्या हाँ और ना में कोई अन्तर है?
- क्या साधु और शैतान में कोई अन्तर है?
- जिससे दूसरे लोग डर रहें हैं, अवश्य ही उससे मुझे भी डरना चाहिए? यह क्या मूर्खता है?
- अन्य सभी लोग यज्ञ में बैल की बलि के मांस से संतुष्ट हैं। बसंत ऋतु में कुछ लोग उद्यानों में और कुछ छतों पर बैठे आनंदमग्न हैं।

  • ऐसे नवजात शिशु सा जिसने अभी मुस्कुराना भी नहीं सीखा, मैं ही प्रवाहित नदी में तिनके सा, यह भी नहीं जानता कि स्वयं मैं कहां हूँ? मैं अकेला हूँ, बिना इस बात के ज्ञान के कि मुझे कहीं जाना भी है या मुझे ही कहीं नहीं जाना है।
  • लोगों के पास उनकी जरूरत से ज्यादा है और मेरे पास ही कुछ भी नहीं है।
  • मैं मूर्ख हूं, भ्रम में हूं बाकी सब स्पष्ट और चमकदार हैं, बस मैं ही धुंधला, मंदा और दुर्बल हूँ।
  • लोग तीखे और चालाक हैं, मैं ही भोला और झल्ला हूँ।
  • ओह! मैं ही समुद्र की लहर सा दिशाहीन, और अविश्रांत वायु सा बहता हूं।
  • लोग महत्वपूर्ण कामों में व्यस्त हैं, बस मैं उद्देश्यहीन और उदास हूं।
  • मैं सर्वथा अलग हूं क्योंकि मैं ही धरती माँ द्वारा पोषित हूँ।

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