क्या हम, लिंग, धर्म, वर्ग, विचार आदि के भेदों के बिना नहीं रह सकते। हमें बचपन से ही भेद करना सिखा दिया जाता है। उच्च वर्ग के लोगों द्वारा निम्न वर्ग के प्रति, उच्च जाति के लोगों द्वारा निम्न जाति के लोगों के प्रति, शक्तिशाली द्वारा निर्बल के प्रति, धनी द्वारा गरीब के प्रति, शिक्षित द्वारा अशिक्षित के प्रति नफरत के बीज बो दिये जाते हैं। आयु के बढ़ने के साथ ही घृणा के पौधे वृक्षों का आकार लेकर आंधियों का आयोजन करने लगते हैं।
इस भेद द्वारा या तो हम अपनी झूठी अहंपूर्ण पहचान गढ़ रहे होते हैं? या ऐसा करके एक विशाल समूह के साथ जुड़ने पर मिलने वाले सुरक्षा, सुविधा और संरक्षण के अहसास के लिए लालायित रहते हैं।
क्या इसी प्रकार के राष्ट्रीय भेद अंतर्राष्ट्रीय मुद्दों का कारण नहीं? क्या इसी प्रकार के स्थानीय भेद राष्ट्रीय मुद्दे नहीं?
क्या अंतर है अमरीका और मुसलमानों के बीच झगड़ों में और उन संघर्षों में जो हजारों साल पहले आदिम बर्बर समाजों के बीच पशुओं, औरतों को रिझाने जैसे कारणों, और अपने अपने अंधविश्वासों को वरीयता देने के लिए होते थे।
व्यक्ति और व्यक्ति में भेद से तो बहुत ज्यादा नुक्सान की संभावना नहीं रहती पर राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक भीड़ों में अपने आपको सुविधापूर्ण, सुरक्षित और धन्य समझने वाले लोग बड़े-बड़े युद्वों द्वारा सामूहिक विनाशों के कारण बनते हैं।
हमें हमेशा याद रखना चाहिए बांटने वाली चीजों में हमें कभी भी सुरक्षा, सुविधा और सच्ची खुशी हासिल नहीं हो सकती। बांटने वाली चीजें ही संघर्ष, अशांति और अंततः सर्वनाश का कारण होती हैं।
पक्षी का घोसला होता है,
ReplyDeleteमकड़ी का जाला
और मनुष्य मित्रता करते हैं।
dilchasp pankti... dil jeet liya isne
lag raha hai aap ek kaafi achhe vishay ko lekar aa rahe hain..abhi jaldi mein hoon aakar fursat se padhta hoon :)
हमें हमेशा याद रखना चाहिए बांटने वाली चीजों में हमें कभी भी सुरक्षा, सुविधा और सच्ची खुशी हासिल नहीं हो सकती। बांटने वाली चीजें ही संघर्ष, अशांति और अंततः सर्वनाश का कारण होती हैं।
ReplyDelete...Aur kya.