ईश्वर इंसान जैसा कोई चरित्र नहीं हैं..ये अलग बात है कि वो ऐसा हो भी सकता है और नहीं भी। ईश्वर को आपके जीने—मरने से कोई सरोकार भी नहीं होता, ये और बात है कि आप कुदरत के नियमों को जानते समझतें हैं... उसके हिसाब से चलते हैं तो आपकी उम्र काफी लंबी हो।
ईश्वर को जानने वाले कभी यह नहीं कहते कि वो ईश्वर के प्रतिनिधि हो गये हैं और उन्हें कुछ खास तरह के अधिकार बख्शे गये हैं..ये अलग बात है कि उनके बारे में हमारी कुछ धारणाओं में ऐसा पाया जाता है. किसी देवी को जीभ काट कर चढ़ा देना, किसी सदमें से ना उबर पाने की पिनक में सन्यासी बन कर जिन्दगी भर भटकते रहना, ईश्वर के बारे में सोचते हुए पागल हो जाना, ईश्वर के नाम पर भीख मांगना और धनदौलत का साम्राज्य खड़ा करना...इन सब बातों का ईश्वर से कैसा रिश्ता हो सकता है?
बाबा बनकर भीड़ की साष्टांग दंडवतों के मज़े लेना, भीड़ को भेड़—बकरियों की तरह चराना..इससे किसी ईश्वर को क्या लेना देना। आप कौन सी भाषा बोल रहे हैं, किस ग्रह के और किस देश संस्कृति में पले बढ़े हैं इस के हिसाब से आपके आराध्य तय होते हैं... ना कि एक ओरिजनल ईश्वर.
आपकी इच्छाओं आकांक्षाओं और फिर असफलताओं और कुदरती आपदाओं से ईश्वर के क्या सरोकार हो सकते हैं? या बचपन, जवानी, बुढ़ापे में बंटी 100 बरसे की छोटी सी जिंदगी की उपलब्धियों अनुपलब्धियों से ... (आपके हिसाब से भी) सृष्टि चलाने वाले ईश्वर के क्या रिश्ता है.
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