Thursday, September 10, 2009


‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 2




सभी स्वर्ग को सुन्दर कहते हैं केवल इसलिए नरक और कुरूपता भी जन्म ले लेते हैं।

सभी अच्छे को अच्छे के रूप में जानते हैं क्योंकि वहीं बुराई भी है।

इसलिए होना और नहीं होना एक साथ प्रकट होते हैं।

कठिन और सरल एक दूसरे के पूरक हैं।
बड़ा और छोटा एक दूसरे से हैं।
ऊँचा और नीचा एक दूसरे से ऊपर नीचे हैं।
सुर और शोर एक दूसरे को संतुलित करते हैं।
अगला और पिछला एक दूसरे का अनुगमन करता है।

इसलिए संत ‘‘कुछ न करना’’ करते हैं। मौन रहना सिखाते हैं।

क्या ऐसा नहीं होता कि हजारों चीजें बिना प्रकटाये पैदा होती हैं
और बिना रोके या समाप्त किये खत्म हो जाती या रुक जाती हैं?

तो काम करो, पर उसका श्रेय न लो।
काम खत्म हुआ तो खत्म हुआ, फिर उसे याद क्यों रखना?

जो ऐसा होता है, वह हमेशा रहता है।

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