- जो हमें ईश्वर प्रदत्त या सौभाग्यवश मिल गया है उस पर अभिमान न करके, दूसरों के सामने उसकी प्रशंसा, बखान या बढ़ाई न करके, उसे महत्वपूर्ण न मान कर हम दूसरों की ईष्र्या से बचे रह सकते हैं, इस तरह हम झगड़ों से भी बचे रह सकते हैं।
- यदि हम संग्रहवृत्ति के हैं तो निश्चित ही हमें चिंता भी होगी। जिनके पास खजाना होता है उन्हें ही चोरों की चिंता होती है।
- संग्रहवृत्ति को खत्म कर हम चैर्य कर्म (चोरी करने के काम, चोरी करन की आदत) को रोक सकते, और कुछ चोरी के डर या चोरी हो जाने से भी भय से भी मुक्त रह सकते हैं।
- वस्तुओं को चाह की भावना से न देखकर हम मन के भ्रमों से बचे रह सकते हैं। लालसा, लोभ, आशाएं, उम्मीदें पालने से भी मनुष्य परेशान रहता है। लालसा, लोभ, आशाएं, उम्मीदें निश्चित ही अनावश्यक चीजें हैं। जो सहजतापूर्वक मिल जाए उसमें संतोष, शांति का कारक है।
- भला आदमी मन के भार को हल्का कर, पेट भर भरने की छोटी सी चिंता, इच्छाओं को न्यूनतम कर और अपने संकल्पों को दृढ़ करके - स्वयं के द्वारा शासित रहता है।
- यदि आदमी ज्ञानशून्य और इच्छाशून्य हो जाए तो तुच्छ-चालाक और कांईंया लोग किसी भी तरह के हस्तक्षेप की कोशिश भी न कर सकेंगे।
- यदि आदमी ने कुछ भी नहीं किया गया है, तो सब कुछ ठीक ही होगा।
Thursday, September 17, 2009
‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 3
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment
टिप्पणी