Tuesday, October 27, 2009

24 जो भागदौड़ में ही लगा हो, वह प्रगति नहीं कर सकता।

जो पंजों के बल खड़ा हो, वह स्थिर या दृढ़ नहीं होता।
जो भागदौड़ में ही लगा हो, वह प्रगति नहीं कर सकता।
जो दिखावा करता है, वह प्रबुद्ध नहीं है।
जो खुद को ही सही साबित करने में लगा रहता है वह सम्माननीय नहीं होता।
जो दावा करता है, निश्चित ही उसने कुछ भी अर्जित नहीं किया है।
जो डींगे मारता है, उसने निश्चित ही सत्य नहीं भोगा।

परमात्मा का सच्चा अनुसरणकर्ता कहता है अतिरिक्त भोजन और वस्त्र अनावश्यक बोझ है, जो खुशी नहीं देता, इसलिए वो इनके परे रहता है।

Monday, October 26, 2009

23 देर रात गये आया तूफान बहुत देर तक नहीं ठहरता।

मित भाषण श्रेयस्कर है।
प्रकृति भी मितभाषी होती है।


देर रात गये आया तूफान बहुत देर तक नहीं ठहरता।
लगातार कई दिनों तक बारिश हो, ऐसा भी कम ही होता है।
यहाँ तक कि प्रकृति भी एक ही रूप में बहुत देर तक नहीं रहती।
जमीन और आसमान भी एक जैसे नहीं रहते।
तो आदमी के अस्तित्व की क्या कहें?

जो परमात्मा का अनुसरण करता है परमात्मा से ही ऐक्य प्राप्त कर लेता है।
जो पुण्य करता है, पुण्यों को प्राप्त होता है।
जो मार्ग से भटक जाता है, वह नष्ट हो जाता है।

जो परमात्मा का साह्चर्य करता है परमात्मा उसका स्वागत करता है।
जो पुण्यों के साथ साहचर्य करते हैं वह पुण्य भोगते हैं।
जो मार्ग भटकता है वह अपनी इच्छा से भटकने का आनंद भोगता है।


जो किसी पर विश्वास नहीं करता, लोग भी उस पर विश्वास नहीं करते।
जो किसी पर विश्वास नहीं करता, उसका विश्वास कैसे किया जा सकता है?

Friday, October 23, 2009

22 मृतप्राय या न होने जैसा हो जाने में ही परम संरक्षण है।

22

बीज में ही वृक्ष छुपा रहता है।
जो पैदा होता है, नष्ट होता है वो फिर पैदा होता है अर्थात् मृत्यु में संरक्षण है।

जो मुड़ा हुआ है, वही सीधा हो सकता है।
जो खाली है, वही भर सकता है।
जो पुराना होता और घिसता है, वही नया हो सकता है।
जितने कम की उम्मीद रखेंगे, उतना ही अधिक मिलेगा।
जितना अधिक पाने की कोशिश करंेगे उतना ही भ्रम में पड़ेंगे।

इसलिए भला आदमी एक ही को अपनाता है और दूजों के लिए उदाहरण बनता है।
वह प्रदर्शन नहीं करता, सामने नहीं आता, इसलिए चैगुना प्रसिद्ध होता है।
अपने आपको सिद्ध करने की कोशिश नहीं करता, इसलिए सभी उसे उत्कृष्ट कहते हैं।
अभिमान नहीं करता, इसलिए सभी जगह मान्य होता है।
डींगंे नहीं मारता, इसलिए उसे नीचा नहीं देखना पड़ता।
वह किसी से लड़ता झगड़ता नहीं, इसलिए उससे भी कोई नहीं लड़ता-झगड़ता।

इसलिए प्राचीन लोग कहते थे:
मृतप्राय या न होने जैसा हो जाने में ही परम संरक्षण है।
तब वह पूर्ण हो जाता है और सब कुछ उसी में समाहित रहता है।

Thursday, October 22, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 21

परमात्मा का अनुसरण करना महान धर्म और नैतिकता है।
वही अगम्य अमूर्त है।
अगम्य और अमूर्त है और फिर भी उसकी अनन्त छवियां हैं।
अगम्य और अमूर्त है और फिर भी उसके अनन्त रूपाकार हैं।
वह धुंधला और काला है और वही सारों का सार है।
वह परम सारवान है और अति यथार्थ है इसलिए उसमें श्रद्धा जैसा कुछ रखना झूठ है।
आदिकाल से अब तक उसका नाम कोई नहीं भुला पाया।
यह सब जानने के कारण, क्योंकि मैं उसे जानता हूं इसलिए मैं सृजन के मार्ग जानता हूं।

Wednesday, October 21, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 20

  • सीखना और बनावटीपन छोड़ दो और अपनी सभी समस्याओं का अंत करो।
- क्या हाँ और ना में कोई अन्तर है?
- क्या साधु और शैतान में कोई अन्तर है?
- जिससे दूसरे लोग डर रहें हैं, अवश्य ही उससे मुझे भी डरना चाहिए? यह क्या मूर्खता है?
- अन्य सभी लोग यज्ञ में बैल की बलि के मांस से संतुष्ट हैं। बसंत ऋतु में कुछ लोग उद्यानों में और कुछ छतों पर बैठे आनंदमग्न हैं।

  • ऐसे नवजात शिशु सा जिसने अभी मुस्कुराना भी नहीं सीखा, मैं ही प्रवाहित नदी में तिनके सा, यह भी नहीं जानता कि स्वयं मैं कहां हूँ? मैं अकेला हूँ, बिना इस बात के ज्ञान के कि मुझे कहीं जाना भी है या मुझे ही कहीं नहीं जाना है।
  • लोगों के पास उनकी जरूरत से ज्यादा है और मेरे पास ही कुछ भी नहीं है।
  • मैं मूर्ख हूं, भ्रम में हूं बाकी सब स्पष्ट और चमकदार हैं, बस मैं ही धुंधला, मंदा और दुर्बल हूँ।
  • लोग तीखे और चालाक हैं, मैं ही भोला और झल्ला हूँ।
  • ओह! मैं ही समुद्र की लहर सा दिशाहीन, और अविश्रांत वायु सा बहता हूं।
  • लोग महत्वपूर्ण कामों में व्यस्त हैं, बस मैं उद्देश्यहीन और उदास हूं।
  • मैं सर्वथा अलग हूं क्योंकि मैं ही धरती माँ द्वारा पोषित हूँ।

Tuesday, October 20, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 19

  • यह सभी अपने आप में बाह्यरूपाकार मात्र हैं, और अपने आप में सम्पूर्ण नहीं:
- अपना नकली साधुत्व और ज्ञान त्‍याग दो, यह आपके और किसी भी के लिए सौ गुना श्रेष्ठ है।
- झूठी दयालुता और नैतिकता त्‍याग दो, लोग अपने में ही धर्मनिष्ठता और प्रेम पुनः खोज लेंगे।
- चतुराई त्‍याग दो, लाभ छोड् दो चोर और डाकू अपने आप खत्म हो जायेंगे।
  • यह और महत्वपूर्ण है:
- सरलता को देख पाना।
- किसी की यथार्थ प्रकृति को समझ पाना।
- स्वार्थपरता और ज्वलंत इच्छाओं को अपने से अलग-थलग कर पाना।

Friday, October 16, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 18

- जब परमात्मा को भूला दिया जाता है, तब दिखावटी दयालुता और नैतिकता प्रकट करने का फैशन आ जाता है।
- जब पांडित्य और छद्म अक्लमंदी पैदा होते हैं तब महान पाखंड शुरू होते हैं।
- जब अपने घर में शांति नहीं मिलती तब झूठी भक्ति और धार्मिकता का आचरण प्रारंभ किया जाता है।
- जब देश भ्रम और अराजकता में हो तब ईमानदार अधिकारियों का प्रादुर्भाव होता है।
इन सब का तात्पर्य क्या यह नहीं कि असली सिक्कों की कमी होने पर खोटे सिक्के चलन में आ जाते हैं।

Tuesday, October 13, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 17

  • जो जरा सा भी मुश्किल होता है उसे कम ही लोग जानते हैं। उनसे भी कम लोग उसे अमल में लाते हैं। और उनसे भी कम लोग विवेक के मार्ग पर बने रहते हैं।
  • डरे और भीरू लोग जिन्हें खुद पर ही विश्वास नहीं उन पर विश्वास कैसे किया जा सकता है?
  • जब बिना कुछ कहे सुने काम हो जाता है तो लोग लोग अहं से भरकर कहते हैं ”हमने कर दिखाया।“

Monday, October 12, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 16

  • खुद को सब चीजों से खाली कर लो।
  • मन स्थिर हो।
  • जब कोई अपने तक, अपनी वापसी देखता है तो हजारों चीजें प्रकट और विलीन होती दिखती हैं।
वह विकसित होती हैं, फूलती-फलती हैं और मूल को लौट जाती हैं।
  • स्रोत की ओर लौटना, स्थैर्य है, जो प्रकृति का अपना तरीका है।
  • प्रकृति के तरीके या ढंग अपरिवर्तनीय हैं।
  • स्थैर्य (स्थिरता) को जानना ही अंर्तदृष्टि है।
  • स्थैर्य (स्थिरता) को न जानना अनिष्ट की ओर ले जाता है।

  • स्थैर्य को जानने से मन खुलता है।
  • खुले मन से आप हार्दिक होते हैं।
  • हार्दिक, ह्रदय से होने पर आप जो करते हैं वह धार्मिक होता है।
  • धार्मिक होने पर अप दिव्य को प्राप्त होते हैं।
  • दिव्य होने पर ही आप ईश्वर से सायुज्य कर सकते हैं।
  • ईश्वर से सायुज्य में सबकुछ निहित है।
तब शरीर के मरने पर भी, ईश्वर रहता है।

Saturday, October 10, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 15

  • प्राचीन गुरू गूढ़, रहस्यमय, अगाध गंभीर और अनुक्रियाशील पाये जाते हैं।

  • ज्ञान की गहराई अथाह है, क्योंकि वह अथाह है।

  • हम जो कुछ भी करते हैं वह प्रकट को ही विस्तार देता विवरण होता है।
- बरसात में उफनती नदी को पार करने वाला कितना ध्यानमय होता है कि बह न जाये।
- खतरे को भांपता हुआ व्यक्ति कितना सजग होता है।
- मन कभी, मेहमाननवाजी में लगे व्यक्ति-सा सौजन्यपूर्ण होता है।
- मन कभी, पिघलती बर्फ सा घुलनशील होता है।
- मन कभी, अनगढ़ लकड़ी के ठूंठ सा सरल होता है।
- मन कभी, गहरी गुफाओं की तरह खाली होता है।
- मन कभी, मैले तालाब की तरह गंदला होता है।
  • कौन इस बात का इंतजार करता है कि गंदलापन तली में बैठ जाए,पानी निथर जाये?
  • कौन कर्म की गति में स्थिर बन रहता है?
  • परमात्मा की ओर देखने वाला वासनाओं की पूर्ति के मार्ग नहीं ढूंढता।
- चूंकि वह वासनाओं को पूरा करने के उपाय नहीं ढूढता इसलिए परिवर्तन या बदलाव की इच्छा के भार से उसकी पीठ दोहरी नहीं हुई जाती।

Friday, October 9, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 14

  • देखो, वह दिखता नहीं है - वह रूपाकारों से परे है।
    सुनो, वह सुनाई नहीं देता- वह ध्वनियों से परे है।
    ग्रहण करो, वह पकड़ाई में नहीं आता - वह अमूर्त है।
    यह सब अपरिभाषेय है।
    इसलिये ये एक में ही समाहित हैं।

  • वह ऊपर से चमकीला नहीं।
    वह नीचे से काला नहीं।
    वह विवरण से अटूट रूप से जुड़ा सूत्र है।
    वह कहीं भी वापस नहीं जाता।
    या वह ‘कहीं नहीं’ की ओर वापस जाता है।
    वह अरूप का रूप है।
    वह अमूर्तता की छवि है।
    वह अपरिभाषेय है और कल्पनातीत है।

  • उसके आगे चलो तो पाओगे उसका आरंभ कहीं नहीं मिलता।
    उसका पीछा करो, तो अंत भी नहीं दिखता।
    उस परमात्मा के साथ ही चलो,
    इसी क्षण में जिओ।

    प्राचीन और आदि का ज्ञान, परमात्मा का सार है।

Tuesday, October 6, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 13

  • देह के साथ ही दुर्भाग्य भी आता है, शरीर के बिना कैसा दुर्भाग्य?
  • लाभ हानि की परवाह किये बिना अपने आपको पूर्णतः समर्पित कर दो, इससे आप सब चीजों पर विश्वास कर पायेंगे और उनका खयाल रख सकेंगे।
  • संसार से वैसे ही प्यार करो जैसे तुम स्वयं से करते हो इस तरह आप सारे संसार की सच्ची देखभाल कर पाएंगें।

Monday, October 5, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 12

  • हमारी आंखें सदा चित्र-विचित्र स्वप्नलोकों में ही रहना चाहती हैं। सतरंगे सपनों से चैंधियां कर हम अंधे ही हो जाते हैं।
  • मधुर स्वर, गीत-गान और तरह-तरह की जादूई शब्दों की समरसता के चक्कर और मीठी आवाजों से हम बहरे के समान बेसुध हो जाते हैं।
  • हमारी जीभ तरह-तरह के स्वादों में डूबकर पेट तक जाने क्या क्या पहुंचाती रहती है जो हमारे शरीर को अपनी उम्र ही पूरी नहीं करने देती।
  • आदमी खत्म हो जाता है, इन्द्रियों के अनुभवों की चाहत कभी खत्म नहीं होती।
  • महत्वाकांक्षाओं की दौड़ आदमी को पागल बनाकर छोड़ देती है।
  • इसलिए कीमती लोग इन सब चक्करों में नहीं पड़ते।
  • साधुजन, जो दिख रहा है उससे नहीं बल्कि अपने विवेक से निर्देशित होते हैं। वह सर्वश्रेष्ठ ही चुनता और उस पर चलता है।

Friday, October 2, 2009

‘‘ताओ तेह किंग’’ अध्याय 11

  • पहिये की परिधि पर फैली तानें, धुरी पर ही टिकी होती हैं
    धुरी का खोखलापन ही सारा भार वहन करने में सक्षम होता है
  • मिट्टी से जब मूर्तियां बनाई जाती हैं तो उनमें उभारों का आधार उनके पीछे का खोखलापन ही होता है।
  • मिट्टी के घड़े का खोखलापन ही उसे पानी या अन्य चीजें रखने या सहेजने लायक या उपयोगी बनाता है।
  • यदि मकान में खिड़कियां और दरवाजें न हों तो मकान और कब्र में क्या अंतर रहे?
  • शून्य और निर्वात चीजों को उपयोगी बनाते हैं।
  • जो दिख रहा है ऐसा लगता है कि उससे लाभ मिल रहा है, पर उपयोगी और महत्वपूर्ण वो है जो नहीं होता या नहीं दिखता।